हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं या यूं कहूं कि भारत 21 वीं सदी में जी रहा है. मुम्बई की लोकल से भी तेज भागती जिन्दगीयां , मोबाईल और फ़ास्ट फ़ूड culture , तमाम जनसंचार माध्यमों मे विग्यापनों और ग्लेमर के जरिये उत्पाद्कों कि होड , चौडी होती सड्कें और संकरे होते मन , एम एम एस और इन्टरनेट मे उलझा हमारा युवा , मरते किसान और मजदूर , बेरोजगारी , भूखमरी . बढती मेहंगाई और आतंकवाद . यंही आज हमारे भारत तस्वीर है.
बेहतर जिंदगी , विचार , इतिहास और साहित्य के सवाल खोते से लग रहे है. हर तरफ़ स्वार्थ , प्रतिस्पर्धा , जलन और हिंसा फ़ेलती जा रही हैं . हम अपनो को नहीं पह्चान रहे है .एक पूरा वेक्यूम ( खालीपन ) हमारे मानवीय रिश्तों के बीच पसरता जा रहा है. हम चाह कर भी किसी ग़लत चीज़ को रोक नहीं पा रहे हैं . यहीं हताशा और निराशा हमारे जीवन कि रचनात्मकता को नष्ट कर रही है.
आओं! मिल कर आखर को इन तमाम मानवता विरोधी ताकतों के खिलाफ़ एक सार्थक और मजबूत वैघ्यानिक आखर आंदोलन बनायें.
आखिर में दुष्यतं कुमार कि कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात खत्म करना चाहता हूं .
“ कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता “
“ एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारो “
आपका
चन्द्रपाल
chandrapal@aakhar.org
http://aakhar.org
Thursday, September 3, 2009
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